HI/Prabhupada 0747 - द्रौपदी ने प्रार्थना की 'कृष्ण, अगर आप चाहो, आप बचा सकते हो'



Lecture on SB 1.8.24 -- Los Angeles, April 16, 1973

तो कर्ण का द्रौपदी के स्वयंवर के दौरान अपमान हुअा । स्वयंवर में... स्वयंवर का मतलब है, बड़ी, बड़ी राजकुमारी, बहुत योग्य राजकुमारी, वे अपने पति का चयन खुद करती थी । जैसे तुम्हारे देश में, पति का चयन लडकी को दिया जाता है, जैसे वह चाहे । यह आम जनता के लिए बहुत अच्छा नहीं है, लेकिन जो असामान्य हैं, उच्च शिक्षित, जो कैसे चयन करना है यह जानते हैं, ऐसी लड़की की सुविधा दी गई अपने का पति का चयन करने के लिए, और बहुत सख्त परिस्थतियों में । जैसे द्रौपदी के पिता नें यह शर्त रखी - वहाँ छत पर एक मछली है, और मछली की आंख को बेधना होगा, सीधे देख कर नहीं, लेकिन पानी में छाया देखकर । तो इतने सारे राजकुमार थे । जैसे ही इस तरह की घोषणा होती है, सारे राजकुमार मुकाबला करने के लिए आते हैं । यही क्षत्रिय सिद्धांत है ।

तो द्रौपदी के स्वयंवर में कर्ण भी था । द्रौपदी जानती थी... द्रौपदी का वास्तविक उद्देश्य था अपने पति के रूप में अर्जुन को स्वीकार करना । लेकिन वह जानती थी कि कर्ण है वहाँ । अगर कर्ण प्रतिस्पर्धा करता है, तो अर्जुन सफल होने में सक्षम नहीं होगा । इसलिए वह कहती है कि "इस प्रतियोगिता में, क्षत्रिय के अलावा, कोई भी भाग नहीं ले सकता है ।" इसका मतलब है, कर्ण उस समय, यह जानकरी नहीं थी कि वह एक क्षत्रिय था । वह कुंती का पुत्र था उसकी शादी से पहले । तो लोगों को पता नहीं था । यह रहस्य था । तो कर्ण एक बढ़ई द्वारा पाला गया । इसलिए वह एक शूद्र के रूप में जाना जाता था ।

तो द्रौपदी नें इस बात का फायदा उठाया और कहा कि "मैं नहीं चाहती कि कोई भी बढ़ई यहाँ आए और प्रतिस्पर्धा करे । में ये नहीं चाहती ।" तो कर्ण की अनुमति नहीं थी । तो कर्ण नें इसे बड़े अपमान के रूप में लिया । अब, जब द्रौपदी को खेल में खो दिया गया, वह सबसे अागे अाया । वह दुर्योधन का बड़ा गहरा दोस्त था । "अब हम द्रौपदी की नग्न सुंदरता को देखना चाहते हैं ।" तो बैठक में बुजुर्ग लोग थे । धृतराष्ट्र था । भीष्म थे, द्रोणाचार्य । फिर भी, उन्होंने विरोध नहीं किया, "ओह, यह क्या है, कि तुम इस सभा में एक औरत को नग्न बनाने जा रहे हो ?" उन्होंने विरोध नहीं किया । इसलिए असत सभाया: "असभ्य पुरुषों की सभा ।" असभ्य आदमी एक औरत नग्न को देखना चाहता है ।

लेकिन आजकल यह एक फैशन है, समझ रहे हो ? एक औरत को नहीं होना चाहिए, अपने पति को छोड़कर किसी के भी सामने नग्न नहीं होना चाहिए । यह वैदिक संस्कृति है । लेकिन क्योंकि ये धूर्त देखना चाहते थे बड़ी सभा में द्रौपदी को नग्न, तो वे सब धूर्त थे, असत । सत का मतलब है कोमल, और असत का मतलब है अशिष्ट । तो असत सभाया: "उन धूर्तो की सभा में, आपने बचाया" - कृष्ण नें बचाया । द्रौपदी नग्न किया जा रही थी, उसकी साड़ी निकाली जा रही थी । और वह साड़ी समाप्त नहीं हुई । कृष्ण साड़ी की आपूर्ति कर रहे थे । तो वे थक गए उसे नग्न बनाने की कोशिश में । (हंसी) और वे नग्न नहीं हुई, और कपड़े के ढेर खड़े हो गए । वे समझ गए "यह असंभव है ।" और द्रौपदी भी पहले अपने कपड़े को बचाने की कोशिश कर रही थी । और वह क्या कर सकती थी ? वह औरत है, और वे दो आदमी थे । कर्ण और दुःशासन, उसे नग्न बनाने की कोशिश कर रहे थे । तो वह रो रही थी और कृष्ण से प्रार्थना कर रही थी, "मेरे सम्मान को बचाअो ।" लेकिन वह खुद भी कोशिश कर रही थी, बचाने की |

जब उसने सोचा कि "इस तरह से अपने अाप को, आत्म-सम्मान को, बचाना असंभव है," फिर उसने हाथ छोड़ दिए । उसने केवल अपने हाथ उपर किए अौर प्रार्थना की, "कृष्ण, अगर अाप चाहो, अाप बचा सकते हैं ।" तो यह स्थिति है । जब तक हम अपने अाप को बचाने का प्रयास करते हैं, तो यह बहुत अच्छा नहीं है । अगर हम केवल कृष्ण पर निर्भर करते हैं, "कृष्ण, अगर अाप मुझे बचाअो, तो ठीक है । अन्यथा मुझे मार ड़ालो, जैसे अापकी इच्छा ।" समझ रह हो ?

मारोबि राखोबि - जो इच्छा तोहारा । भाक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं, "मैं अापको आत्मसमर्पण करता हूँ ।" मानस, देहो, गेहो, जो किछु मोर, "मेरे प्यारे प्रभु, जो कुछ भी मेरे पास है, मेरी संपत्ति... और मेरे पास क्या है ? मेरा यह शरीर है । मेरा मन है । मेरा एक छोटा सा घर है और मेरी पत्नी, मेरे बच्चे । यही मेरी सम्पत्ति है ।" तो मानस, देहो, गेहो, जो किछु मोर ।" तो जो भी कुछ मेरे पास है -यह शरीर, यह मन, यह पत्नी, ये बच्चे, ये घर, सब कुछ, मैं आपको समर्पित करता हूँ ।" मानस देहो गेहो जो किछु मोर अर्पिलुन तुवा पदे नंद किशोर | कृष्ण नंद किशोर के रूप में जाने जाते हैं । तो यह समर्पण है, कोई रुकावट नहीं, पूरी तरह से आत्मसमर्पण, अकिंचन ।