HI/Prabhupada 0903 - जैसे ही नशा खत्म होगा, तुम्हारे सभी नशीले स्वप्न भी खत्म हो जाते हैं



730418 - Lecture SB 01.08.26 - Los Angeles

अनुवाद: "मेरे प्रभु, स्वामी अाप आसानी से प्राप्य हैं लेकिन केवल उन लोगों के लिए जो भौतिकता से ऊब चुके हैं | जो भौतिक प्रगति के पथ पर है, खुद को बेहतर बनाने की कोशिश में सम्मानजनक पितृत्व, महान ऐश्वर्य, उच्च शिक्षा और शारीरिक सुंदरता के साथ, ईमानदारी से अाप तक नहीं पहुँच सकता है ।"

प्रभुपाद: तो ये सब अयोग्यताए हैं । भौतिक संपन्नता, ये चीज़ें... जन्म, बहुत कुलीन परिवार या देश में जन्म लेना । जैसे तुम अमेरिकी लड़के और लड़कियॉ, तुम अमीर पिता, मां, राष्ट्र में जन्मे हो । तो यह है, एक अर्थ में, यह भगवान की कृपा है । यह भी... अच्छे परिवार में या अच्छा देश में जन्म लेना, बहुत अमीर, भव्य बनना, ज्ञान, शिक्षा में उन्नत होना, सब कुछ, सभी भौतिक । और सुंदरता, यह पुण्य कर्मों का उपहार हैं । अन्यथा, क्यों एक गरीब आदमी, वह किसी के ध्यान को आकर्षित नहीं करता है ? लेकिन एक अमीर आदमी आकर्षित करता है । एक शिक्षित व्यक्ति ध्यान आकर्षित करता है । एक मूर्ख, धूर्त, ध्यान आकर्षित नहीं करता है ।

तो इसी तरह सुंदरता में, संपन्नता में, ये बातें भौतिक दृष्टि से बहुत फायदेमंद हैं । जन्मैश्वर्य श्रुत (श्रीमद भागवतम १.८.२६) । लेकिन जब एक व्यक्ति इस तरह भौतिकता में भव्य है, उसे नशा हो जाता है । "ओह, मैं अमीर आदमी हूँ । मैं शिक्षित हूँ । मेरे पास पैसा है ।" नशा होना । इसलिए हम सलाह देते हैं... क्योंकि वे पहले से ही इन संपत्ति के कारण नशे में हैं। और फिर से नशा ? फिर, स्वभाव से, ये लोग पहले से ही नशे में हैं । नशे में इस अर्थ से... जैसे तुम शराब पीते हो, तुम मदमत्त हो जाते हो । तुम आकाश में उड़ रहे हो । तुम एसा सोचते हो । तुम स्वर्ग में चले गए हो । हाँ । तो ये नशे के प्रभाव हैं । लेकिन मदमत्त व्यक्ति नहीं जानता है कि यह नशा, नशा खत्म हो जाएगा । यह समय से सीमित है । यह बना नहीं रहेगा । यही भ्रम कहा जाता है । एक है ये नशा कि "मैं बहुत अमीर हूँ । मैं बहुत खूबसूरत हूँ, मैं बहुत शिक्षित हूँ, मैं बहुत हूँ... मैं उच्च परिवार में पैदा हुआ हूँ, उच्च राष्ट्र में । " यह सब ठीक है। लेकिन यह नशा, यह कितनी देर तक रहेगा ?

मान लो तुम अमेरिकी हो । तुम अमीर हो, तुम सुंदर हो । तुम ज्ञान में उन्नत हो, और तुम हो, तुम अमेरिकी होने पर गर्व कर सकते हो । लेकिन कब तक यह नशा रहेगा ? जैसे ही यह शरीर समाप्त होगा, सब कुछ समाप्त हो जाता है । पूरा, पूरा नशा । जैसे... वही बात । तुम कुछ पीते हो, मदमत्त हो जाते हो । लेकिन जैसे ही नशा खत्म हो जाता है, तुम्हारे सभी नशीले सपने भी ख़त्म हो जाते हैं, समाप्त । तो यह नशा, अगर तुम मदमत्त रहते हो, आकाश और मानसिक मंच में मंडराते हुए ... ये मानसिक मंच, अहंकारी मंच हैं । शारीरिक मंच । लेकिन तुम यह शरीर नहीं हो, यह स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर नहीं हो । यह स्थूल शरीर, पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश से बना है, और सूक्ष्म शरीर, मन, बुद्धि और अहंकार से बना है । लेकिन तुम इन आठ तत्वों से ताल्लुक नहीं रखते हो, अपरेयम ।

भगवद गीता में । यह भगवान की निम्न शक्ति है । हर कोई मानसिक रूप से बहुत उन्नत है, लेकिन वह नहीं जानता है कि वह इस निम्न शक्ति के प्रभाव में है । वह नहीं जानता है । यही नशा है । जैसे मदमत्त व्यक्ति नहीं जानता है कि उसकी क्या हालत है । तो यह भव्य स्थिति नशा है । और अगर तुम अपने नशे में वृद्धि करते हो... आधुनिक सभ्यता यह है कि हम पहले से ही नशे में धुत्त हैं और नशे को बढ़ाते हैं । हमें नशे की स्थिति से बाहर अाना है, लेकिन आधुनिक सभ्यता बढ़ रही है की "तुम अौर अधिक मदमत्त हो जाअो, अौर मदमत्त, और नरक में जाअो ।" यह आधुनिक सभ्यता की स्थिति है ।