HI/Prabhupada 0932 - कृष्ण जन्म नहीं लेते हैं, लेकिन कुछ मूर्खों को एेसा दिखाई देता है



730424 - Lecture SB 01.08.32 - Los Angeles

तो कुंती कहती हैं: कश्चिद, केचिद अाहुर अजम जातम (श्रीमद भागवतम १.८.३२) । अजम, अनन्त, अजन्मा, नें अब जन्म लिया है । फिर... बेशक हम कह सकते हैं कि श्री कृष्ण नें जन्म लिया है, हॉ, श्री कृष्ण जन्म लेते हैं, लेकिन उनका जन्म हमारे जैसा नहीं है। हमें यह पता होना चाहिए । यह भगवद गीता में कहा गया है: जन्म कर्म च मे दिव्यम यो जानाति तत्वत: (भ गी ४.९) । श्री कृष्ण, देवकी या माँ यशोदा के पुत्र के रूप में जन्म ले रहे हैं, लेकिन वे वास्तव में हमारे जैसे जन्म नहीं ले रहे हैं । यह श्रीमद-भागवतम में वर्णित है ।

जब श्री कृष्ण अवतरित हुए, वे निकले नहीं, वे देवकी के गर्भ से बाहर नहीं आए थे । वे सबसे पहले अवतरित हुए । तुमने तस्वीर देखी है । और फिर वे गोद में एक छोटे से बच्चे बन गए । इसलिए श्री कृष्ण का जन्म दिव्य है । हमारा जन्म जबरन होता है, प्रकृति के नियमों से । वे प्रकृति के नियमों के तहत नहीं हैं । प्रकृति के नियम उनके अधीन काम करते हैं । मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते स चराचरम (भ गी ९.१०) । प्रकृति, श्री कृष्ण के आदेश के तहत काम कर रही है, और हम प्रकृति के आदेश के तहत काम कर रहे हैं । यही अंतर है । देखो, श्री कृष्ण प्रकृति के स्वामी हैं, और हम प्रकृति के दास हैं । यही अंतर है ।

मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते । इसलिए कुंतीदेवी कहती हैं केचिद अाहुर: "कोई कहता है ।" कोई ऐसा कहता है, कि अजन्मे नें जन्म लिया है । कैसे अजन्मा जन्म ले सकता है ? एसा प्रतीत होता है, लेकिन यह जन्म लेना नहीं है । एसा प्रतीत होता है कि उन्होंने हमारी तरह जन्म लिया है । नहीं । इसलिए, यह कहा जाता है, स्पष्ट: केचिद अाहुर । "कुछ मूर्ख व्यक्ति कहते हैं ।" और श्री कृष्ण नें भी भगवद गीता में कहा है: अवजानन्ति माम मूढा: । "जो धूर्त हैं । वे सोचते हैं कि मैं भी साधारण मनुष्य की तरह ही हूँ ।" अवजानन्ति माम मूढा मानुषिम तनुम अाश्रितम (भ गी ९.११) । "क्योंकि मैं एक मनुष्य की तरह अवतरित हुअा हूँ, तो कुछ धूर्त, वे सोचते हैं कि मैं भी मनुष्यों में से एक हूं । " नहीं ।

परम भावम अजानन्त: | वह जानता नहीं है कि क्या रहस्य है, इंसान की तरह भगवान के जन्म लेने के पीछे । परम भावम अजानन्त: । तो इसी प्रकार श्री कृष्ण अज हैं । वे जन्म लेते हैं, वास्तव में जन्म नहीं लेते हैं । वे सर्वत्र हैं । जैसे श्री कृष्ण की तरह, यह कहा गया है: ईश्वर: सर्व भूतानाम हृदेशे अर्जुन तिष्ठति (भ गी १८.६१) । तो ईश्वर, भगवान हर किसी के हृदय में स्थित हैं । अगर यह तथ्य है, तो अगर श्री कृष्ण तुम्हारे हृदय में हैं, तुम्हारे अंदर, तो अगर वे तुरंत आपके सामने आते हैं, तो श्री कृष्ण के लिए कठिनाई क्या है ? वे पहले से ही भीतर हैं, और वे सर्व शक्तिशाली हैं । जैसे ध्रुव महाराज ।

ध्रुव महाराज, जब वे ध्यान में संलग्न थे, चतुर्भुज विष्णु के ध्यान पर, वे उन पर ध्यान कर रहे थे । अचानक उनका ध्यान टूटा और उन्होंने तुरंत अपने सामने उसी रूप को देखा, तुरंत । क्या यह श्री कृष्ण के लिए बहुत मुश्किल है ? वे तुम्हारे भीतर पहले से ही हैं, और अगर वे बाहर आते हैं... इसी प्रकार श्री कृष्ण हर किसी के हृदय में हैं, देवकी के भी, तो अगर वे देवकी के सामने अाते हैं उसी चतुर भुज रूप में, क्या यह श्री कृष्ण के लिए बहुत मुश्किल है ? तो लोगों को पता नहीं है ।

इसलिए श्री कृष्ण कहते हैं की: "तुम्हे समझना होगा: जन्म कर्म मे दिव्यम (भ गी ४.९), दिव्य जन्म । मेरी गतिविधियॉ, मेरा जन्म । " इसलिए कुंतीदेवी जानती हैं कि श्री कृष्ण अजन्मे हैं । श्री कृष्ण जन्म नहीं लेते हैं, लेकिन कुछ मूर्खों को ऐसा प्रतीत होता है । इसलिए वे कहते हैं कि श्री कृष्ण नें जन्म लिया है । लेकिन क्यों श्री कृष्ण जन्म लेते हैं ? अगला सवाल होगा । उसका उत्तर है : पुण्य-श्लोकस्य कीर्तये, पुण्य-श्लोकस्य (श्रीमद भागवतम १.८.३२) । जो बहुत पवित्र हैं, आध्यात्मिक समझ में बहुत उन्नत हैं, उनकी महिमा के लिए ।