HI/Prabhupada 1023 - अगर भगवान सर्व शक्तिशाली हैं, तुम क्यों उनकी शक्ति को घटाते हो, कि वे अवतरित नहीं हो सकते ?



730408 - Lecture SB 01.14.44 - New York

भगवान दो उद्देश्य से अाते हैं; भक्तों को संरक्षण देने के लिए और राक्षसों को मारने के लिए । तो राक्षसों को मारने के लिए, उन्हे आने की आवश्यकता नहीं है । उनके पास असीम शक्ति है । केवल उनके संकेत से, किसी भी व्यक्ति को मार डाला जा सकता है । पर्याप्त शक्ति है, दुर्गादेवी । लेकिन वे अपने भक्त के लिए आते हैं, क्योंकि उनका भक्त, वह बहुत चिंतित रहता है । वह हमेशा परमेश्वर के संरक्षण की मांग करता है । तो क्योंकि भक्त उन्हे देखकर संतुष्ट हो जाएगा, इसलिए वे आते हैं । यही (अस्पष्ट) । क्योंकि भक्त हमेशा जुदाई महसूस कर रहे हैं, केवल उसे राहत देने के लिए, भगवान का अवतार आता है । प्रलह पयोधी जले धृतवान असि वेदम (श्री दशावतार स्तोत्र १) | अलग अगल अवतार अाते हैं भक्तों को राहत देने के लिए । अन्यथा उनको कोई कार्य नहीं है ।

भारत में, हिंदुओं का एक वर्ग है, वह वास्तव में आर्य समाज के रूप में जाना जाता है । आर्य समाज । आर्य समाज की राय है, "भगवान को क्यों अाना चाहिए ? वे इतने महान हैं; उन्हें क्यों आना चाहिए ?" अवतार पर, वे विश्वास नहीं करते हैं । मुसलमान भी, वे विश्वास नहीं करते हैं, अवतारों पर । वे भी यही कहते हैं "भगवान को क्यों अाना चाहिए ? क्यों उन्हे इंसान की तरह प्रकट होना चाहिए?" लेकिन वे नहीं जानते, न तो वे इस सवाल का जवाब दे सकते हैं "भगवान क्यों नहीं अा सकते हैं ?" वे कहते हैं कि भगवान नहीं आ सकते हैं । लेकिन मैं सवाल रखता हूं "क्यों भगवान नहीं आ सकते हैं ?"; जवाब क्या है ? अगर भगवान सर्व शक्तिशाली है, तो तुम क्यों उनकी शक्ति को कम समझते हो, कि वे नहीं आ सकते हैं ? किस तरह के भगवान हैं वो ? भगवान तुम्हारे कानून के तहत हैं, या तुम भगवान के कानून के तहत हो ?

तो, यह भगवान के प्रेमी और राक्षसों के बीच काअंतर है । राक्षस यह सोच नहीं सकते हैं । वे सोचते हैं कि शायद कोई भगवान है । वह निराकार ही होने चाहिए ।" क्योंकि इसे इस रूप का अनुभव है: सीमित । तो इसलिए मायावादी तत्वज्ञानी कहते हैं कि जब भगवान जब आते हैं, निराकार - वे माया का रूप लेते हैं । यही मायावादी कहा जाता है। वे वास्तव में भगवान में विश्वास नहीं करते हैं । निराकारवाद, शून्यवाद । निर्विशेष शून्यवादी । उनमें से कुछ निर्विशेष हैं: "हाँ, भगवान हो सकते हैं, लेकिन उनका कोई रूप नहीं है ।" और मायावादी... दोनों हैं मायावादी, शून्यवादी । बौद्धों और शंकर के अनुगामी, वे विश्वास नहीं करते हैं ।

लेकिन हम वैष्णव, हम जानते हैं कि कैसे नास्तिक को धोखा दिया जाता है । संमोहाय सुर द्विषाम (श्रीमद भागवतम १.३.२४) | भगवान बुद्ध नास्तिक को धोखा देने के लिए आये थे । नास्तिक भगवान में विश्वास नहीं करते हैं, इसलिए भगवान बुद्ध ने कहा है, "हाँ, तुम ठीक कह रहे हो । कोई भगवान नहीं है । लेकिन तुम केवल मुझे सुनने का प्रयास करो ।" लेकिन वे भगवान हैं । तो यह धोखा है । "तुम भगवान में विश्वास मत करो, लेकिन मुझ पर विश्वास करो ।" "हाँ, श्रीमान, मैं विश्वास करूंगा ।" और हम जानते हैं कि वे भगवान हैं । (हंसी) केशव धृत बुद्ध शरीर जय जगदीश हरे (गीत गोविंद, श्री दशावतार स्तोत्र ९) ज़रा देखो (अस्पष्ट) ।