HI/Prabhupada 1049 - गुरु भगवान का विश्वसनीय सेवक । यही गुरु है



750712 - Lecture SB 06.01.26-27 - Philadelphia

राजनीतिज्ञ, या क्या कहा जाता है, नेता, अंधा, वे वादा करेंगे कि "तुम इस तरह से सुखी हो जाअोगे । तुम मुझे वोट देना, और मैं तुम्हारे लिए स्वर्ग ले अाऊंगा, और मुझे मंत्री बनने दो । यही... तुम बस प्रतीक्षा करो, और जैसे ही मैं एक मंत्री और राष्ट्रपति बनता हूं, मैं तुम्हे इस तरह का लाभ दूंगा ।" तो तुम श्री निक्सन का चयन करो, और फिर से तुम निराश हो जाते हो । फिर हम अनुरोध करते हैं, "श्री निक्सन, आप बाहर निकलें," और हम एक और मूर्ख को स्वीकार करते हैं । यह चल रहा है । यह चल रहा है... लेकिन शास्त्र कहता है इस तरह से तुम्हे सही ज्ञान नहीं मिलेंगा । ये मूर्ख आदमी, वे तुम्हें कुछ वादा करेंगे, और वह तुम्हें सुखी करने में असमर्थ है । तुम फिर से निराश हो जाअोगे, फिर से पछतावा । तो फिर क्या, कहाँ से मुझे सही जानकारी मिलेगी ?

वो वेद कहते हैं, तद विज्ञानार्थम स गुरुम एव अभिगच्छेत (मुंडक उपनिषद १.२.१२): "अगर तुम सही जानकारी चाहते हो, तो गुरु के पास जाओ ।" और गुरु कौन है ? यह चैतन्य महाप्रभु बताते हैं कि, अामार अाज्ञाय गुरु हय तार एइ देश (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८) । वे कहते हैं, "तुम केवल मेरे आदेश पर गुरु बन जाअो ।" गुरू का अर्थ है जो श्री कृष्ण के आदेश का प्रचार करता है । चैतन्य महाप्रभु श्री कृष्ण हैं । या जो श्री कृष्ण के सेवक हैं, वही गुरु है । कोई भी गुरु नहीं बन सकता जब तक वह परमेश्वर के अादेश का प्रचार न करे । इसलिए तुम पाअोगे... क्योंकि हम में से हर एक गधा है, हम अपने स्व-हित को नहीं जानते हैं, और कोई भी अाता है "मैं गुरु हूँ।" "तुम कैसे गुरु बन गए ?" "नहीं, मैं स्वयं सिद्ध हूँ । मुझे किसी भी किताब को पढ़ने की आवश्यकता नहीं है । मैं तुम्हें आशीर्वाद देने के लिए आया हूं ।" (हंसी) और मूर्ख धूर्त, वे जानते नहीं है "कैसे तुम गुरु बन सकते हो ?" अगर वह शास्त्र या सर्वोच्च प्राधिकारी, श्री कृष्ण का अनुसरण नहीं करता है, तो वह कैसे बन सकता है ? लेकिन वे स्वीकार करते हैं, गुरु ।

तो इस तरह का गुरु चल रहा है । लेकिन तुम्हे पता होना चाहिए, गुरु का अर्थ है जो परमेश्वर के अादेश का प्रचार करे । यही गुरु है । कोई भी धूर्त कुछ विचार बनाकर गुरु नहीं बन सकता । तुरंत उसे लात मारकर बाहर निकालो, तुरंत । की "यह एक धूर्त है । यह एक गुरु नहीं है ।" गुरु यहाँ है, जैसा कि चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, अामार अाज्ञाय गुरु हया (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८) । गुरु का अर्थ है भगवान का विश्वसनीय सेवक । यही गुरु है ।

तो तुम्हे पहले परीक्षण करना होगा कि "क्या तुम भगवान के विश्वसनीय सेवक हो ?" अगर वह कहता है, "नहीं, मैं भगवान हूँ" अोह! तुरंत उसके चेहरे पर लात मरो । (हंसी) उसे तुरंत लात मारो, कि "तुम धूर्त हो । तुम हमें धोखा देने के लिए आए हो ।" क्योंकि कसौटी है, गुरु का अर्थ है भगवान का विश्वसनीय सेवक, बस । तुम्हे गुरु को समझने के लिए बड़ी परिभाषा की आवश्यकता नहीं है । तो वैदिक ज्ञान तुम्हे संकेत देता है, तद विज्ञानार्थम । तो अगर तुम आध्यात्मिक जीवन का विज्ञान जानना चाहते हो, तद विज्ञानार्थम स गुरुम एव अभीगच्छेत (मुंडक उपनिषद १.२.१२), तुम्हे गुरु के पास जाना होगा । और गुरु कौन है ? गुरु का अर्थ है भगवान का विश्वसनीय सेवक । बहुत ही सरल बात ।