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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु हरे कृष्ण के जप के बारे में अपने व्यावहारिक अनुभव का वर्णन कर रहे हैं । जब उन्होने खुद को देखा कि "मैं लगभग एक पागल की तरह हो रहा हूं," तो उन्होने फिर से अपने आध्यात्मिक गुरु का संपर्क किया और कहा, "पूज्य गुरुदेव, मुझे नहीं पता कि आपने मुझसे किस तरह का जप करने के लिए कहा है ।" क्योंकि महाप्रभु हमेशा खुद को एक मूर्ख कि तरह पेश करते थे और कि वे अनुभव नहीं कर सकते, कि वे समझ नहीं सकते कि क्या हो रहा है, लेकिन उन्होने अपने गुरु से कहा कि "ये मेरे द्वारा विकसित किए गए लक्षण हैं: कभी-कभी मैं रोता हूं, कभी-कभी मैं हंसता हूं, कभी-कभी मैं नाचता हूं । ये कुछ लक्षण हैं । इसलिए मुझे लगता है कि मैं पागल हो गया हूं ।" |
670210 - प्रवचन चै.च. आदि ७.८०-९५ - सैन फ्रांसिस्को |
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