HI/660809 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 14:11, 25 July 2020 by Amala Sita (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
शास्त्रों से हमें यह ज्ञात होता है, कि भगवद धाम का नाम वैकुण्ठ है। वैकुण्ठ का अर्थ है विगत-कुण्ठ यत्र। कुण्ठ का अर्थ है चिन्ता। जहाँ पर कोई चिन्ता या उत्कंठा नहीं होती, उस स्थान को वैकुण्ठ कहा जाता है। तो कृष्ण कहते हैं की नाहम तिष्ठामि वैकुण्ठे योगीनाम हृदयेषु च: "मेरे प्रिय नारद, यह मत सोचना कि, मैं भगवद्धाम वैकुण्ठ में या योगियों के हृदय में ही रहता हूँ । नहीं ।" तत तत तिष्ठामि नारद यत्र गायन्ति मद भक्ता: "जहाँ-जहाँ मेरे भक्त मेरे नाम का उच्चारण या नाम का जप करते हैं, मैं वहाँ उपस्थित होता हूँ। मैं वहीँ जाता हूँ।"
660809 - प्रवचन भ.गी. ४.२०-२४ - न्यूयार्क