HI/670107 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६७]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६७]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - न्यूयार्क]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - न्यूयार्क]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/670107CC-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"तो हम परम भगवान के साथ अपना संबंध बनाने जा रहे हैं। इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है? यह अब चैतन्य महाप्रभु द्वारा समझाया जा रहा है, और उसको कहा जाता है — उस सेवा को निष्पादित करने की प्रक्रिया, जिसके द्वारा हम उस स्थिति तक पहुँच सकते हैं - जिसे अभिध्या कहा जाता है। अभिध्या का अर्थ है कर्तव्यों का निष्पादन, कर्तव्यों का निष्पादन, या दायित्व का निष्पादन - कर्तव्य नहीं: दायित्व। कभी-कभी कर्तव्य को आप टाल सकते हैं और आप को माफ किया जा सकता हैं, लेकिन दायित्व को नहीं। दायित्व का मतलब है कि आपको करना है। क्यों की आप उसके लिए हैं, अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगे। |Vanisource:670107 - Lecture CC Madhya 22.05 - New York|670107 - प्रवचन CC Madhya 22.05 - न्यूयार्क}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/670106c प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|670106c|HI/670107b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|670107b}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/670107CC-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"तो हम परम पुरुषोत्तम  भगवान के साथ अपना संबंध बनाने जा रहे हैं। इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? यह अब चैतन्य महाप्रभु द्वारा समझाया जा रहा है, और उसे कहा जाता है — उस सेवा को निष्पादित करने की प्रक्रिया, जिसके द्वारा हम उस स्थिति तक पहुँच सकते हैं, जिसे अभिधेय कहा जाता है। अभिधेय का अर्थ है कर्तव्यों का निष्पादन, या दायित्व का निष्पादन - कर्तव्य नहीं: दायित्व। कभी-कभी कर्तव्य को आप टाल सकते हैं और आप को क्षमा किया जा सकता हैं, किन्तु दायित्व को नहीं। दायित्व का मतलब है कि आपको करना ही है। क्योंकी आप उसके लिए हैं, यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो आप संकट में पड़ जाएंगे।" |Vanisource:670107 - Lecture CC Madhya 22.05 - New York|670107 - प्रवचन चै.च. मध्य २२.- न्यूयार्क}}

Latest revision as of 03:14, 16 October 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो हम परम पुरुषोत्तम भगवान के साथ अपना संबंध बनाने जा रहे हैं। इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? यह अब चैतन्य महाप्रभु द्वारा समझाया जा रहा है, और उसे कहा जाता है — उस सेवा को निष्पादित करने की प्रक्रिया, जिसके द्वारा हम उस स्थिति तक पहुँच सकते हैं, जिसे अभिधेय कहा जाता है। अभिधेय का अर्थ है कर्तव्यों का निष्पादन, या दायित्व का निष्पादन - कर्तव्य नहीं: दायित्व। कभी-कभी कर्तव्य को आप टाल सकते हैं और आप को क्षमा किया जा सकता हैं, किन्तु दायित्व को नहीं। दायित्व का मतलब है कि आपको करना ही है। क्योंकी आप उसके लिए हैं, यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो आप संकट में पड़ जाएंगे।"
670107 - प्रवचन चै.च. मध्य २२.५ - न्यूयार्क