HI/670108 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 08:37, 26 October 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"कृष्ण ज्ञान के बिना हम आनंदमय नहीं हो सकते। किन्तु स्वभाव से हम आनंदमय हैं। उनके ब्रह्म-सूत्र और वेदांत-सूत्र में, यह कहा गया है, आनंदमयो अभ्यासात। हर एक जीव, ब्रह्म। सभी जीव ब्रह्म हैं, और कृष्ण भी पर-ब्रह्म हैं। इसलिए ब्रह्म और पर-ब्रह्म, दोनों ही स्वभाव से आनंदपूर्ण हैं। वे आनंद चाहते हैं। इसलिए हमारा आनंद कृष्ण से जुड़ा हुआ है, जिस प्रकार अग्नि और उसकी चिंगारी। आग की चिंगारियाँ, आग के साथ जितनी देर तक रहती हैं, वह सुंदर होती है। और जिस प्रकार आग की चिंगारी मूल आग से नीचे गिरती है, ओह, वह बुझ जाती है, वह सुंदर नहीं दिखती है।" |
670108 - प्रवचन चै.च. मध्य २२.६-१० - न्यूयार्क |