HI/670108 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/670108CC-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"कृष्ण ज्ञान के बिना हम आनंदित नहीं हो सकते। लेकिन स्वभाव से हम आनंदित हैं। उनके ब्रह्म-सूत्र में, वेदांत-सूत्र में, यह कहा गया है, आनंदमयो अभयासात्। हर जीव, ब्रह्म। जीव, वे ब्रह्म हैं, और कृष्ण भी परा-ब्रह्म हैं। तो ब्रह्मण और पर-ब्रह्मण, दोनों ही स्वभाव से हर्षित हैं। वे आनंद और सतुंष्टि चाहते हैं। तो हमारा आनंद कृष्ण के संबंध में है,बिलकुल अग्नि और उसकी चिंगारियों की तरह। आग की चिंगारियां,आग के साथ जितनी देर तक प्रकट होती हैं, यह सुंदर है। और जैसे ही आग की चिंगारी मूल आग से नीचे गिरती है, ओह, यह बुझा हुआ है, वह सुंदर नहीं दिखती है।"|Vanisource:670108 - Lecture CC Madhya 22.06-10 - New York|670108 - प्रवचन CC Madhya 22.06-10 - न्यूयार्क}}
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Latest revision as of 08:37, 26 October 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"कृष्ण ज्ञान के बिना हम आनंदमय नहीं हो सकते। किन्तु स्वभाव से हम आनंदमय हैं। उनके ब्रह्म-सूत्र और वेदांत-सूत्र में, यह कहा गया है, आनंदमयो अभ्यासात। हर एक जीव, ब्रह्म। सभी जीव ब्रह्म हैं, और कृष्ण भी पर-ब्रह्म हैं। इसलिए ब्रह्म और पर-ब्रह्म, दोनों ही स्वभाव से आनंदपूर्ण हैं। वे आनंद चाहते हैं। इसलिए हमारा आनंद कृष्ण से जुड़ा हुआ है, जिस प्रकार अग्नि और उसकी चिंगारी। आग की चिंगारियाँ, आग के साथ जितनी देर तक रहती हैं, वह सुंदर होती है। और जिस प्रकार आग की चिंगारी मूल आग से नीचे गिरती है, ओह, वह बुझ जाती है, वह सुंदर नहीं दिखती है।"
670108 - प्रवचन चै.च. मध्य २२.६-१० - न्यूयार्क