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  1. HI/Prabhupada 0611 - जैसे ही तुम सेवा की भावना को खो दोगे, यह मंदिर एक बड़ा निराशजनक बन जाएगा‏‎ (2 revisions)
  2. HI/Prabhupada 0612 - जो जीभ के साथ हरे कृष्ण का जप रहा है, जिह्वाग्रे, वह शानदार है‏‎ (2 revisions)
  3. HI/Prabhupada 0613 - हमें विशेष ख्याल रखना होगा छह चीज़ो का‏‎ (2 revisions)
  4. HI/Prabhupada 0614 - हमें बहुत सावधान रहना चाहिए, पतन का मतलब है लाखों सालों का अंतराल‏‎ (2 revisions)
  5. HI/Prabhupada 0616 - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, यह प्राकृतिक विभाजन है‏‎ (2 revisions)
  6. HI/Prabhupada 0617 - कोई नया सूत्र नहीं है । वही व्यास पूजा, वही तत्वज्ञान‏‎ (2 revisions)
  7. HI/Prabhupada 0618 - आध्यात्मिक गुरु बहुत खुशी महसूस करता है, कि "यह लड़का मुझसे अधिक उन्नत है "‏‎ (2 revisions)
  8. HI/Prabhupada 0619 - उद्देश्य है आध्यात्मिक जीवन को बेहतर बनाना । यही गृहस्थ-आश्रम है‏‎ (2 revisions)
  9. HI/Prabhupada 0620 - उसके गुण और कर्म के अनुसार वह एक विशेष व्यावसायिक कर्तव्य में लगा हुअा है‏‎ (2 revisions)
  10. HI/Prabhupada 0621 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को सिखा रहा है प्राधिकारी के प्रति विनम्र बनना‏‎ (2 revisions)
  11. HI/Prabhupada 0622 - जो कृष्ण भावनामृत में लगे हुए हैं, उनके साथ अपना संग करो‏‎ (2 revisions)
  12. HI/Prabhupada 0623 - आत्मा, एक शरीर से दूसरे में देहांतरित होता है‏‎ (2 revisions)
  13. HI/Prabhupada 0624 - भगवान भी शाश्वत हैं, और हम भी शाश्वत हैं‏‎ (2 revisions)
  14. HI/Prabhupada 0625 - जीवन की आवश्यकताऍ परम शाश्वत, परमेश्वर द्वारा आपूर्ति की जा रही है‏‎ (2 revisions)
  15. HI/Prabhupada 0626 - अगर तुम तथ्यात्मक बातें जानना चाहते हो, तो तुम्हे आचार्य के पास जाना होगा‏‎ (2 revisions)
  16. HI/Prabhupada 0627 - ताज़गी के बिना, हम इस उदात्त विषय वस्तु को नहीं समझ सकते हैं‏‎ (2 revisions)
  17. HI/Prabhupada 0628 - हम ऐसी बातों को स्वीकार नहीं करते हैं, "शायद ।" नहीं । हम जो तथ्य है वह स्वीकार करते हैं‏‎ (2 revisions)
  18. HI/Prabhupada 0629 - हम अलग अलग वस्त्र में भगवान के विभिन्न पुत्र हैं‏‎ (2 revisions)
  19. HI/Prabhupada 0630 - शोक का कोई कारण नहीं है, क्योंकी आत्मा रहेगी‏‎ (2 revisions)
  20. HI/Prabhupada 0631 - मैं शाश्वत हूँ, शरीर शाश्वत नहीं है । यह तथ्य है‏‎ (2 revisions)
  21. HI/Prabhupada 0633 - हम कृष्ण की चमकति चिंगारी जैसे हैं‏‎ (2 revisions)
  22. HI/Prabhupada 0634 - कृष्ण माया शक्ति से कभी प्रभावित नहीं होते हैं‏‎ (2 revisions)
  23. HI/Prabhupada 0635 - आत्मा हर शरीर में है, यहां तक ​​कि चींटी के भीतर भी‏‎ (2 revisions)
  24. HI/Prabhupada 0636 - जो पंडित हैं, वे भेद नहीं करते हैं कि उनकी आत्मा नहीं है । हर किसी की आत्मा है‏‎ (2 revisions)
  25. HI/Prabhupada 0637 - कृष्ण की उपस्थिति के बिना कुछ भी मौजूद नहीं हो सकता है‏‎ (2 revisions)
  26. HI/Prabhupada 0638 - यह प्रथम श्रेणी का योगी है, जो हमेशा कृष्ण के बारे में चिन्तन करता है‏‎ (2 revisions)
  27. HI/Prabhupada 0639 - व्यक्तिगत अात्मा हर शरीर में है और परमात्मा, परमात्मा असली मालिक हैं‏‎ (2 revisions)
  28. HI/Prabhupada 0640 - तुम्हे खुद को भगवान घोषित करने वाले बदमाश मिल सकते हैं, उसके चेहरे पर लात मारो‏‎ (2 revisions)
  29. HI/Prabhupada 0641 - एक भक्त की कोई मांग नहीं होती है‏‎ (2 revisions)
  30. HI/Prabhupada 0642 - यह कृष्ण भावनामृत का अभ्यास है भौतिक शरीर को आध्यात्मिक शरीर में बदलना‏‎ (2 revisions)
  31. HI/Prabhupada 0643 - जो कृष्ण भावनामृत में उन्नत हैं, उन्हें कृष्ण के लिए काम करना है‏‎ (2 revisions)
  32. HI/Prabhupada 0644 - सब कुछ है कृष्ण भावनामृत में‏‎ (2 revisions)
  33. HI/Prabhupada 0645 - जिसने यह आत्मसाक्षातकार कर लिया है, वह हर जगह वृन्दावन में है‏‎ (2 revisions)
  34. HI/Prabhupada 0646 - योग प्रणाली यह नहीं है कि तुम बकवास करते रहो‏‎ (2 revisions)
  35. HI/Prabhupada 0647 - योग का मतलब है परम के साथ संबंध‏‎ (2 revisions)
  36. HI/Prabhupada 0648 - स्वभाव से हम जीव हैं, हमें कुछ करना ही होगा‏‎ (2 revisions)
  37. HI/Prabhupada 0649 -मन चालक है । शरीर रथ या गाडी है‏‎ (2 revisions)
  38. HI/Prabhupada 0650 - कृष्ण भावनामृत के पूर्ण योग से इस उलझन से बहार निकलो‏‎ (2 revisions)
  39. HI/Prabhupada 0651 - पूरी योग प्रणाली का मतलब है मन को हमारा दोस्त बनाना‏‎ (2 revisions)
  40. HI/Prabhupada 0652 - यह पद्म पुराण सत्व गुण में रहने वाले व्यक्तियों के लिए है‏‎ (2 revisions)
  41. HI/Prabhupada 0653 - अगर मेरे पिता एक रूप नहीं है, तो मुझे यह रूप कहाँ से प्राप्त हुआ‏‎ (2 revisions)
  42. HI/Prabhupada 0654 - तुम अपने प्रयास से भगवान को नहीं देख सकते हो क्योंकि तुम्हारी इन्द्रियॉ अपूर्ण हैं‏‎ (2 revisions)
  43. HI/Prabhupada 0655 - धर्म का उद्देश्य है भगवान को समझना । और भगवान से प्रेम करना सीखना‏‎ (2 revisions)
  44. HI/Prabhupada 0656 - जो लोग भक्त हैं, वे किसी से नफरत नहीं करते हैं‏‎ (2 revisions)
  45. HI/Prabhupada 0657 - मंदिर इस युग के लिए एक मात्र एकांत जगह है‏‎ (2 revisions)
  46. HI/Prabhupada 0658 - श्रीमद भागवतम सर्वोच्च ज्ञानयोग है और भक्ति योग है, संयुक्त‏‎ (2 revisions)
  47. HI/Prabhupada 0659 - बस विष्णु के बारे में सुनना और कीर्तन करना‏‎ (2 revisions)
  48. HI/Prabhupada 0660 - केवल यौन जीवन को नियंत्रित करके तुम एक बहुत शक्तिशाली आदमी बन जाते हो‏‎ (2 revisions)
  49. HI/Prabhupada 0661 - कोई भी इन लड़कों की तुलना में बेहतर ध्यानी नहीं है‏‎ (2 revisions)
  50. HI/Prabhupada 0662 - वे चिंता से भरे हुए हैं क्योंकि उन्होंने अस्थायी को ग्रहण किया है‏‎ (2 revisions)

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