HI/BG 11.32

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 32

श्रीभगवानुवाच
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे
येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥३२॥

शब्दार्थ

श्री-भगवान् उवाच—भगवान् ने कहा; काल:—काल; अस्मि—हूँ; लोक—लोकों का; क्षय-कृत्—नाश करने वाला; प्रवृद्ध:—महान; लोकान्—समस्त लोगों को; समाहर्तुम्—नष्ट करने में; इह—इस संसार में; प्रवृत्त:—लगा हुआ; ऋते—बिना; अपि—भी; त्वाम्—आपको; न—कभी नहीं; भविष्यन्ति—होंगे; सर्वे—सभी; ये—जो; अवस्थिता:—स्थित; प्रति-अनीकेषु—विपक्ष में; योधा:—सैनिक।

अनुवाद

भगवान् ने कहा – समस्त जगतों को विनष्ट करने वाला काल मैं हूँ और मैं यहाँसमस्त लोगों का विनाश करने के लिए आया हूँ । तुम्हारे (पाण्डवों के) सिवादोनों पक्षों के सारे योद्धा मारे जाएँगे ।

तात्पर्य

यद्यपि अर्जुन जानता था कि कृष्ण उसके मित्र तथा भगवान् हैं, तो भी वहकृष्ण के विविध रूपों को देखकर चकित था । इसलिए उसने इस विनाशकारी शक्ति केउद्देश्य के बारे में पूछताछ की । वेदों में लिखा है कि परम सत्य हरवस्तु को, यहाँ तक कि ब्राह्मणों को भी, नष्ट कर देते हैं । कठोपनिषद् का (१.२.२५) वचन है –

यस्य ब्रह्म च क्षत्रं च उभे भवत ओदनः ।

मृत्युर्यस्योपसेचनं क इत्था वेद यत्र सः ॥

अन्ततः सारे ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा अन्य सभी परमेश्र्वर द्वारा काल-कवलितहोते हैं । परमेश्र्वर का यह रूप सबका भक्षण करने वाला है और यहाँ परकृष्ण अपने को सर्वभक्षी काल के रूप में प्रस्तुत करते हैं । केवल कुछपाण्डवों के अतिरिक्त युद्धभूमि में आये सभी लोग उनके द्वारा भक्षित होंगे ।

अर्जुन लड़ने के पक्ष में न था, वह युद्ध न करना श्रेयस्करसमझता था, क्योंकि तब किसी प्रकार की निराशा न होती । किन्तु भगवान् काउत्तर है कि यदि वह नहीं लड़ता, तो भी सारे लोग उनके ग्रास बनते, क्योंकियही उनकी इच्छा है । यदि अर्जुन नहीं लड़ता, तो वे सब अन्य विधि से मरते ।मृत्यु रोकी नहीं जा सकती, चाहे वह लड़े या नहीं । वस्तुतः वे पहले से मृतहैं । काल विनाश है और परमेश्र्वर की इच्छानुसार सारे संसार को विनष्ट होनाहै । यह प्रकृति का नियम है ।