HI/Prabhupada 0150 - हमें जप नहीं छोडना चाहिए



Lecture on SB 6.1.15 -- Denver, June 28, 1975

अथापि ते देव पदाम्बुज द्वयम प्रसाद लेशानुग्रहीत एव हि, जानाति तत्वम न चान्य एको अपि विचिन्वन (श्रीमद भागवतम १०.१४.२९) | कृष्ण की अकारण दया जिन्हे मिलती है, वे कृष्ण को समझ सकते हैं। अन्य, न चान्य एको अपि विचिन्वन । चिरम् का मतलब है लम्बे समय के लिए, कई सालों के लिए, वे यही कल्पना करते हैं की भगवान क्या है, या कृष्ण क्या है, यह प्रक्रिया से काम नहीं होगा | उस तरह के कई वैदिक संस्करण हैं:

अत: श्री कृष्ण नामादि
न भवेद ग्राह्यम् इन्द्रियै:
सेवन्मुखे हि जिह्वादौ
स्वयम् एव स्फुरति अद:
(चैतन्य चरितामृत १७.१३६)

कृष्ण, उनका नाम, उनकी प्रसिद्धि, उनके गुण, उनके कार्य ... श्री कृष्ण नामादि न भवेद....नामादि मतलब है "पवित्र नाम से शुरू।" तो संभव नहीं ... तो अगर हम भौतिक मंच पर ख़ुद को रखेंगे, तो हजार साल के लिए हम मंत्र जप करें, यह मुश्किल होगा। यही नामापराध कहा जाता है। बेशक, पवित्र नाम इतना शक्तिशाली है कि अपराध के साथ जप करने से भी धीरे - धीरे वह शुद्ध हो जाता है। इसलिए हमें जप नहीं छोडना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में, हमें हरे कृष्ण का जप करते रहना चाहिए। लेकिन चेतावनी है कि अगर हम ख़ुद को भौतिक मंच पर रखते हैं, तो कृष्ण को समझना संभव नहीं होगा।

उनका पवित्र नाम, उनके गुण, उनका रूप, उनके कार्य । यह संभव नहीं होगा। इसलिए प्रक्रिया भक्ति है। और जब तुम कृष्ण को समझने के मंच पर आते हो, तो तुरंत तुम आध्यात्मिक दुनिया में जाने के लिए योग्य हो जाते हो। यह है ... कृष्ण नें भगवद गीता में भी कहा है, त्यक्त्वा देहम् पुनर् जन्म नैति माम् एति (भ गी ४.९) |