HI/Prabhupada 0312 - मनुष्य तर्कसंगत जानवर है



Morning Walk -- April 1, 1975, Mayapur

प्रभुपाद: अब, कम से कम मेरे लिए, यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन सैद्धांतिक नहीं रहा । यह व्यावहारिक है । मैं सभी समस्याओं का समाधान कर सकता हूँ ।

पुष्ट कृष्ण: लोग किसी भी तपस्या को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं, हालांकि ।

प्रभुपाद: हम्म?

पुष्ट कृष्ण: लोग किसी भी तपस्या को स्वीकार नहीं करेंगे ।

प्रभुपाद: तो फिर तुम्हे बीमारी से पीड़ित होना होगा । अगर तुम्हे बीमारी है, तो तुम्हे सहना होगा ... यह तपस्या क्या है? तपस्या कहा है?

पुष्ट कृष्ण: अगर वे दवा को स्वीकार नहीं करते हैं, तो वे ठीक नहीं किए जा सकते हैं ।

प्रभुपाद: तो उन्हे भुगतना होगा । एक आदमी, बिमार, और वह दवा लेना नहीं चाहता है, तो कहां है ...? उसे भुगतना होगा । इलाज कहां है?

पंचद्रविड : वे कहते हैं कि हम रोगग्रस्त हैं ।

प्रभुपाद: एह?

पंचद्रविड: वे कहते हैं कि हम रोगग्रस्त हैं । वे कहते हैं कि, हम में से हर एक, हम रोगग्रस्त हैं, न की वो ।

प्रभुपाद: हाँ । बहरा आदमी दूसरों को बहरा समझता है । (हंसी) इसका मतलब है कि वे मनुष्य भी नहीं हैं । पशु । वे तर्क सुनने के लिए तैयार नहीं कि "या हम रोगग्रस्त हैं, या तुम रोगग्रस्त हो। बैठ जाओ । बात करो ।" इसके लिए भी, वे तैयार नहीं हैं । तो फिर? क्या कर सकते हैं हम जानवरों के साथ?

पंचद्राविड: वे कहते हैं कि हम पुराने जमाने के हैं । वे अब हमारे साथ संबन्ध नहीं रखना चाहते हैं ।

प्रभुपाद: तो क्यों तुम समस्याओं से परेशान हो? क्यों तुम समाज की समस्याओं से परेशान हो? तुम परेशान हो, लेकिन तुम एक उपाय नहीं कर सकते । दुनिया भर में, अखबार भरा हुआ है, बस धड़कता हुअा ।

विष्णुजन: श्रील प्रभुपाद, आप उन्हें उचित बना सकते हैं? वे अनुचित हैं, तो कोई उपाय है उन्हे ...

प्रभुपाद: वे उचित हैं । मनुष्य, हर इंसान, उचित है । यह कहा जाता है, "मनुष्य तर्कसंगत जानवर है ।" जब तर्कशक्ति नहीं हो तो, तो मतलब है कि वे अभी भी जानवर हैं ।

पंचद्रविड: ठीक है, जानवरों के साथ क्या किया जा सकता है?

प्रभुपाद: यह है ... यह बहुत सरल सच है । बस मैं यह शरीर हूँ । मैं खुशी ढूंढ रहा हूँ । तो क्यों मैं खुशी ढूंढ रहा हूँ? ... अगर तुम बस इस बात पर चर्चा करो, तो तुम पाअोगे कि आदमी उचित है । क्यों मैं खुशी ढूंढ़ रहा हूँ? जवाब क्या है? यह एक तथ्य है । हर कोई खुशी की तलाश में है । क्यों हम खुशी ढूंढ़ रहे हैं? जवाब क्या है?

पंचद्रविड: क्योंकि हर कोई दुखी है, और वे इसे पसंद नहीं करते हैं ।

प्रभुपाद: यह एक विपरीत तरीका है, विवरण ।

कीर्तनानन्द: क्योंकि स्वभाव से मैं खुश हूं ।

प्रभुपाद: हाँ । स्वभाव से मैं खुश हूं । और खुश कौन है, यह शरीर या आत्मा? पुष्ट कृष्ण: नहीं, आत्मा ।

प्रभुपाद: खुशी कौन चाहता है? मैं इस शरीर की रक्षा करना चाहता हूँ - क्यों? क्योंकि मैं इस शरीर के भीतर हूँ । अौर अगर मैं इस शरीर से चला जाऊँ, कौन इस शरीर की खुशी को ढूंढता है? यह आम समझ है, उन्हे समझ नहीं है । क्यों मैं खुशी ढूंढ़ रहा हूँ? मैं इस शरीर को ढक रहा हूँ ताकि यह शरीर ठंड से प्रभावित न हो । इसलिए मैं शरीर की खुशी ढूंढ़ रहा हूँ सर्दी और गर्मी से ? क्योंकि मैं अंदर हूँ.... अगर मैं शरीर के भीतर से दूर चला जाऊँ, तो खुशी की मांग नहीं रहगी । या तुम उसे सड़क पर फेंक दो या अत्यधिक ठंड या गर्मी में, कोई फर्क नहीं पडता | तो कौन सुख ढूंढ रहा है? वे नहीं जानते हैं । किसके लिए तुम इतने व्यस्त हो खुशी के लिए ? वे नहीं जानते हैं । बस बिल्लियों और कुत्तों की तरह ।

पुष्ट कृष्ण: लेकिन वे सोचते हैं कि उनके पास समय नहीं है पवित्र नाम का जप करने के लिए ।

प्रभुपाद: हम्म?

पुष्ट कृष्ण: उनका सिद्धान्त यह है कि, खुश रहने के लिए, उन्हे दिन भर काम करना होगा ।

प्रभुपाद: हम्म । वह तुम्हारा सिद्धान्त है । तुम दुष्ट हो, लेकिन हम काम नहीं कर रहे हैं । क्यों तुम हमारा उदाहरण नहीं देख रहे हो? हम तो बस खुशी से जी रहे हैं ।