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  1. HI/Prabhupada 0868 - हम जीवन के इस भयानक स्थिति से बच रहे हैं। तुम खुशी से बच रहे हो‏‎ (2 revisions)
  2. HI/Prabhupada 0869 - जनता व्यस्त मूर्ख है । तो हम आलसी बुद्धिमान पैदा कर रहे हैं‏‎ (2 revisions)
  3. HI/Prabhupada 0870 - यह क्षत्रिय का कर्तव्य है, बचाना, रक्षा करना‏‎ (2 revisions)
  4. HI/Prabhupada 0871 - राजा प्रथम श्रेणी के ब्राह्मण, साधु, द्वारा नियंत्रित थे‏‎ (2 revisions)
  5. HI/Prabhupada 0872 - यह जरूरी है कि मानव समाज चार वर्णो में बांटा जाना चाहिए‏‎ (2 revisions)
  6. HI/Prabhupada 0873 - भक्ति का मतलब है अपने को उपाधियों से शुद्ध करना‏‎ (2 revisions)
  7. HI/Prabhupada 0874 - जो आध्यात्मिक मंच पर उन्नत हैं, वह प्रसन्नात्मा है । वह खुश है‏‎ (2 revisions)
  8. HI/Prabhupada 0875 - अपने खुद के भगवान के नाम का जाप करो । कहाँ आपत्ति है - लेकिन भगवान के पवित्र नाम का जाप करो‏‎ (2 revisions)
  9. HI/Prabhupada 0876 - जब तुम आनंद के आध्यात्मिक महासागर पर आओगे, इसमें दिन प्रतिदिन वृद्धि होगी‏‎ (2 revisions)
  10. HI/Prabhupada 0877 - अगर तुम आदर्श नहीं हो, तो यह केंद्र खोलना बेकार होगा‏‎ (2 revisions)
  11. HI/Prabhupada 0878 - भारत में वैदिक सभ्यता का पतन‏‎ (2 revisions)
  12. HI/Prabhupada 0879 - विनम्रता भक्ति सेवा में बहुत अच्छी है‏‎ (2 revisions)
  13. HI/Prabhupada 0880 - कृष्ण भावनामृत को कृष्ण को परेशान करने के लिए अपनाया है, या तुम वास्तव में गंभीर हो‏‎ (2 revisions)
  14. HI/Prabhupada 0881 - यद्यपि भगवान अदृश्य हैं, अब वे दिखाई देने के लिए अवतरित हुए हैं, कृष्ण‏‎ (2 revisions)
  15. HI/Prabhupada 0882 - कृष्ण बहुत उत्सुक हैं हमें परम धाम ले जाने के लिए, पर हम ज़िद्दी हैं‏‎ (2 revisions)
  16. HI/Prabhupada 0883 - अपनी आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए अपना समय बर्बाद मत करो‏‎ (2 revisions)
  17. HI/Prabhupada 0884 - हम बैठे हैं और कृष्ण के बारे में पृच्छा कर रहे हैं । यही जीवन है‏‎ (2 revisions)
  18. HI/Prabhupada 0885 - आध्यात्मिक आनंद समाप्त नहीं होता । यह बढ़ता है‏‎ (2 revisions)
  19. HI/Prabhupada 0886 - व्यक्ति भागवत या पुस्तक भागवत, तुम सेवा करो । फिर तुम स्थिर रहोगे‏‎ (2 revisions)
  20. HI/Prabhupada 0887 - वेद का मतलब है ज्ञान, और अन्त का मतलब अंतिम चरण, या अंत‏‎ (2 revisions)
  21. HI/Prabhupada 0888 - हरे कृष्ण मंत्र का जप करो और भगवान का साक्षात्कार करो‏‎ (2 revisions)
  22. HI/Prabhupada 0889 - अगर तुम एक सेंट रोज़ जमा करते हो, एक दिन यह एक सौ डॉलर हो सकता है‏‎ (2 revisions)
  23. HI/Prabhupada 0890 - कितना समय लगता है कृष्णा को आत्मसमर्पण करने के लिए?‏‎ (2 revisions)
  24. HI/Prabhupada 0891 - कृष्ण नियमित आवर्तन से कई सालों के बाद इस ब्रह्मांड में अवतरित होते हैं‏‎ (2 revisions)
  25. HI/Prabhupada 0892 - अगर तुम शिक्षा से गिर जाते हो, तो कैसे तुम शाश्वत सेवक रह सकते हो ?‏‎ (2 revisions)
  26. HI/Prabhupada 0893 - यह हर किसी का असली इरादा है । कोई भी काम नहीं करना चाहता‏‎ (2 revisions)
  27. HI/Prabhupada 0894 - कर्तव्य करना ही है । थोड़ी पीड़ा हो तो भी। यही तपस्या कहा जाता है‏‎ (2 revisions)
  28. HI/Prabhupada 0896 - जब हम किताब बेचते हैं, यह कृष्ण भावनामृत है‏‎ (2 revisions)
  29. HI/Prabhupada 0897 - अगर तुम कृष्ण भावनाभावित रहते हो, यह तुम्हारा लाभ है‏‎ (2 revisions)
  30. HI/Prabhupada 0898 - क्योंकि मैं एक भक्त बन गया हूँ, कोई खतरा नहीं होगा, कोई दुख नहीं होगा । नहीं‏‎ (2 revisions)
  31. HI/Prabhupada 0899 - भगवान मतलब बिना प्रतिस्पर्धा के : एक । भगवान एक हैं । कोई भी उनसे महान नहीं है‏‎ (2 revisions)
  32. HI/Prabhupada 0900 - जब इन्द्रियों को इन्द्रिय संतुष्टि के लिए उपयोग किया जाता है, यह माया है‏‎ (2 revisions)
  33. HI/Prabhupada 0901 - अगर मैं ईर्ष्या नहीं करता हूँ, तो मैं आध्यात्मिक दुनिया में हूँ । कोई भी जांच कर सकता है‏‎ (2 revisions)
  34. HI/Prabhupada 0902 - कमी है कृष्ण भावनामृत की तो अगर तुम कृष्ण भावनाभावित बनते हो तब सब कुछ पर्याप्त है‏‎ (2 revisions)
  35. HI/Prabhupada 0903 - जैसे ही नशा खत्म होगा, तुम्हारे सभी नशीले स्वप्न भी खत्म हो जाते हैं‏‎ (2 revisions)
  36. HI/Prabhupada 0904 - तुमने भगवान की संपत्ति चुराई है‏‎ (2 revisions)
  37. HI/Prabhupada 0905 - असली चेतना में आओ कि सब कुछ भगवान का है‏‎ (2 revisions)
  38. HI/Prabhupada 0906 - तुम्हारे पास शून्य है । कृष्ण को रखो । तुम दस बन जाते हो‏‎ (2 revisions)
  39. HI/Prabhupada 0907 - आध्यात्मिक दुनिया में, तथाकथित अनैतिकता भी अच्छी है‏‎ (2 revisions)
  40. HI/Prabhupada 0908 - मैं सुखी होने की कोशिश कर सकता हूँ, अगर कृष्ण मंजूरी नहीं देते हैं, मैं कभी सुखी नहीं हूँगा‏‎ (2 revisions)
  41. HI/Prabhupada 0909 - मुझे मजबूर किया गया इस स्थिति में आने के लिए मेरे गुरु महाराज के आदेश का पालन करने के लिए‏‎ (2 revisions)
  42. HI/Prabhupada 0910 - हमें हमेशा कोशिश करनी चाहिए की हम कृष्ण द्वारा शाषित रहे । यही सफल जीवन है‏‎ (2 revisions)
  43. HI/Prabhupada 0912 - जो बुद्धिमत्ता में उन्नत हैं, वो भगवान को भीतर और बाहर देख सकते हैं‏‎ (2 revisions)
  44. HI/Prabhupada 0913 - कृष्ण का कोई अतीत, वर्तमान, और भविष्य नहीं है । इसलिए वे शाश्वत हैं‏‎ (2 revisions)
  45. HI/Prabhupada 0914 - पदार्थ कृष्ण की एक शक्ति है, और अात्मा एक और शक्ति‏‎ (2 revisions)
  46. HI/Prabhupada 0915 - साधु मेरा ह्दय है, और मैं भी साधु का ह्दय हूँ‏‎ (2 revisions)
  47. HI/Prabhupada 0916 - कृष्ण को आपके अच्छे कपड़े या अच्छा फूल या अच्छे भोजन की आवश्यकता नहीं है‏‎ (2 revisions)
  48. HI/Prabhupada 0917 - सारा संसार इन्द्रियों की सेवा कर रहा है, इन्द्रियों का सेवक‏‎ (2 revisions)
  49. HI/Prabhupada 0918 - कृष्ण का शत्रु बनना बहुत लाभदायक नहीं है । बेहतर है दोस्त बनो‏‎ (2 revisions)
  50. HI/Prabhupada 0919 - कृष्ण का कोई दुश्मन नहीं है । कृष्ण का कोई दोस्त नहीं है । वे पूरी तरह से स्वतंत्र हैं‏‎ (2 revisions)

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