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  1. HI/Prabhupada 0235 - अयोग्य गुरू का मतलब है जो शिष्य का मार्गदर्शन कैसे करना है यह नहीं जानता है‏‎ (2 revisions)
  2. HI/Prabhupada 0236 - एक ब्राह्मण, एक सन्यासी,भीख माँग सकते हैं, लेकिन एक क्षत्रिय नहीं, एक वैश्य नहीं‏‎ (2 revisions)
  3. HI/Prabhupada 0237 - हम कृष्ण के साथ संपर्क में आ जाते हैं उनका नाम जप कर, हरे कृष्ण‏‎ (2 revisions)
  4. HI/Prabhupada 0238 - भगवान अच्छे हैं, वे सर्व अच्छे हैं‏‎ (2 revisions)
  5. HI/Prabhupada 0239 - कृष्ण को समझने के लिए, हमें विशेष इंद्रियों की आवश्यकता है‏‎ (2 revisions)
  6. HI/Prabhupada 0240 - कोई अधिक बेहतर पूजा नहीं है गोपियों की तुलना में‏‎ (2 revisions)
  7. HI/Prabhupada 0241 - इन्द्रियॉ सर्पों की तरह हैं‏‎ (2 revisions)
  8. HI/Prabhupada 0242 - सभ्यता की मूल प्रक्रिया को हमारा वापस जाना बहुत मुश्किल है‏‎ (2 revisions)
  9. HI/Prabhupada 0243 - एक शिष्य गुरु के पास ज्ञान के लिए आता है‏‎ (2 revisions)
  10. HI/Prabhupada 0244 - हमारा तत्वज्ञान है कि सब कुछ भगवान के अंतर्गत आता है‏‎ (2 revisions)
  11. HI/Prabhupada 0245 - हर कोई अपने इन्द्रियों को संतुष्ट करने की कोशिश कर रहा है‏‎ (2 revisions)
  12. HI/Prabhupada 0246 - कृष्ण का भक्त जो बन जाता है , सभी अच्छे गुण उनके शरीर में प्रकट होते हैं‏‎ (2 revisions)
  13. HI/Prabhupada 0247 - असली धर्म का मतलब है भगवान से प्यार करना‏‎ (2 revisions)
  14. HI/Prabhupada 0248 - कृष्ण की १६१०८ पत्नियां थीं, और लगभग हर बार उन्हे लड़ना पड़ा, पत्नी को हासिल करने के लिए‏‎ (2 revisions)
  15. HI/Prabhupada 0249 - सवाल उठाया गया था कि , क्यों युद्ध होता है‏‎ (2 revisions)
  16. HI/Prabhupada 0250 - श्री कृष्ण के लिए कार्य करो, भगवान के लिए काम करो, अपने निजी हित के लिए नहीं‏‎ (2 revisions)
  17. HI/Prabhupada 0251 - गोपियॉ कृष्ण की शाश्वत संगी हैं‏‎ (2 revisions)
  18. HI/Prabhupada 0252 - हम सोच रहे हैं कि हम स्वतंत्र हैं‏‎ (2 revisions)
  19. HI/Prabhupada 0253 - असली खुशी भगवद गीता में वर्णित है‏‎ (2 revisions)
  20. HI/Prabhupada 0254 - वैदिक ज्ञान गुरु समझाता है‏‎ (2 revisions)
  21. HI/Prabhupada 0255 - भगवान की सरकार में इतने सारे निर्देशक होने चाहिए, वे देवता कहे जाते हैं‏‎ (2 revisions)
  22. HI/Prabhupada 0256 - इस कलियुग में कृष्ण उनके नाम के रूप में आए हैं, हरे कृष्ण‏‎ (2 revisions)
  23. HI/Prabhupada 0257 - तुम कैसे भगवान के कानूनों का उल्लंघन कर सकते हो‏‎ (2 revisions)
  24. HI/Prabhupada 0258 - संवैधानिक रूप से हम सब नौकर हैं‏‎ (2 revisions)
  25. HI/Prabhupada 0259 - कृष्ण को प्यार करने के उत्कृष्ट मंच पर पुन: स्थापित होना‏‎ (2 revisions)
  26. HI/Prabhupada 0260 - इंद्रियों के अादेश द्वारा हम पापी गतिविधियों में भाग लेते चले जा रहे हैं हर जीवन में‏‎ (2 revisions)
  27. HI/Prabhupada 0261 - भगवान और भक्त, वे एक ही स्थिति पर हैं‏‎ (2 revisions)
  28. HI/Prabhupada 0262 - हमें हमेशा सोचना चाहिए कि हमारी सेवा पूर्ण नहीं है‏‎ (2 revisions)
  29. HI/Prabhupada 0263 - अगर तुमने इस सूत्र को बहुत अच्छी तरह से अपने हाथ में लिया है, तो तुम प्रचार करते रहोगे‏‎ (2 revisions)
  30. HI/Prabhupada 0264 - माया भी कृष्ण की सेवा कर रही है, लेकिन कोई धन्यवाद नहीं है‏‎ (2 revisions)
  31. HI/Prabhupada 0265 - भक्ति का मतलब है ऋषिकेश, इंद्रियों के मालिक, की सेवा करना‏‎ (2 revisions)
  32. HI/Prabhupada 0266 - कृष्ण पूर्ण ब्रह्मचारी हैं‏‎ (2 revisions)
  33. HI/Prabhupada 0269 - बदमाश अर्थघटन द्वारा भगवद् गीता नहीं समझ सकते हो‏‎ (2 revisions)
  34. HI/Prabhupada 0270 - तो प्रत्येक व्यक्ति की अपनी प्राकृतिक प्रवृत्तियॉ है‏‎ (2 revisions)
  35. HI/Prabhupada 0271 - कृष्ण का नाम अच्युत है‏‎ (2 revisions)
  36. HI/Prabhupada 0272 - भक्ति दिव्य है‏‎ (2 revisions)
  37. HI/Prabhupada 0273 - आर्य का मतलब है जो कृष्ण भावनामृत में उन्नत है‏‎ (2 revisions)
  38. HI/Prabhupada 0274 - वैसे ही जैसे हम ब्रह्म सम्प्रदाय के हैं‏‎ (2 revisions)
  39. HI/Prabhupada 0275 - धर्म का मतलब है कर्तव्य‏‎ (2 revisions)
  40. HI/Prabhupada 0276 - गुरु का कार्य है कृष्ण देना, न कि भौतिक सामग्री देना‏‎ (2 revisions)
  41. HI/Prabhupada 0277 - तो कृष्ण भावनामृत का मतलब है हर प्रकार का ज्ञान होना‏‎ (2 revisions)
  42. HI/Prabhupada 0278 - शिष्य का मतलब है जो अनुशासन स्वीकार करे‏‎ (2 revisions)
  43. HI/Prabhupada 0279 - वास्तव में हम पैसे की सेवा कर रहे हैं‏‎ (2 revisions)
  44. HI/Prabhupada 0280 - भक्ति सेवा का मतलब है इंद्रियों को शुद्ध करना‏‎ (2 revisions)
  45. HI/Prabhupada 0281 - मनुष्य पशु है, लेकिन तर्कसंगत जानवर‏‎ (2 revisions)
  46. HI/Prabhupada 0282 - हमें आचार्यों के नक्शेकदम पर चलना होगा‏‎ (2 revisions)
  47. HI/Prabhupada 0286 - आपके और श्रीकृष्ण के बीच के शुद्ध प्रेम का विकृत प्रतिबिंब‏‎ (2 revisions)
  48. HI/Prabhupada 0287 - अपनी स्मृति को पुनर्जीवित करो, कृष्ण के लिए तुम्हारा प्यार‏‎ (2 revisions)
  49. HI/Prabhupada 0288 - जब अाप भगवान की बात करते हैं, तो क्या अाप जानते हैं कि भगवान की परिभाषा क्या है?‏‎ (2 revisions)
  50. HI/Prabhupada 0289 - जो भी परमेश्वर के राज्य से आता है वे एक ही हैं‏‎ (2 revisions)

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