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- HI/Prabhupada 0663 - कृष्ण के साथ अपना खोया संबंध पुनःस्थापित करो । यही योगाभ्यास है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0664 - शून्य का तत्वज्ञान एक और भ्रम है । शून्य नहीं हो सकता (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0665 - कृष्ण ग्रह, गोलोक वृन्दावन, वह स्वत: प्रकाशित है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0667 - पूरी अचेतना अायी है इस शरीर के कारण (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0668 - एक महीने में कम से कम दो अनिवार्य उपवास (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0669 - मन को केंद्रित करने का मतलब है कृष्ण में अपने मन को दृढ करना (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0670 - कृष्ण में अपने मन को दृढ करते हो, फिर भौतिक हिलना नहीं रहता (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0671 - आनंद का मतलब है दो, कृष्ण और तुम (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0672 - जब तुम कृष्ण भावनामृत में हो तो तुम्हारी पूर्णता की गारंटी है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0673 - एक चिड़िया सागर को सूखने की कोशिश कर रही है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0674 - इतना बुद्धिमान होना चाहिए कि अपने शरीर को चुस्त रखने के लिए कितना खाना आवश्यक है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0675 - एक भक्त दया का सागर है । वह दया वितरित करना चाहता है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0676 - मन द्वारा नियंत्रित किए जाने का मतलब है इंद्रियों के द्वारा नियंत्रित होना (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0677 - गोस्वामी एक वंशानुगत शीर्षक नहीं है । यह एक योग्यता है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0678 - कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति योग समाधि में हमेशा रहता है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0679 - कृष्ण भावनामृत में कुछ भी किया गया, जानकरी में या अन्जाने में, उसका प्रभाव होगा ही (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0680 - हम सोच रहे हैं कि हम इस भूमि पर बैठे हैं, लेकिन वास्तव में हम कृष्ण पर बैठे हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0681 - अगर तुम कृष्ण से प्रेम करते हो, तो तुम विश्व से प्रेम करते हो (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0682 - भगवान मेरे अाज्ञापालक नही हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0683 - योगी जो विष्णु रूप में समाधि में है, और एक कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति में, कोई अंतर नहीं है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0684 - योगपद्धतिकी महत्वपूर्ण परीक्षा है अगर तुम विष्णुके रूप पर अपने मनको केंद्रित कर सकते हो (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0685 - भक्ति योग पद्धति त्वरित परिणाम, इसी जीवन में आत्म साक्षात्कार और मुक्ति (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0686 - झंझावात को रोक पाना कठिन होता है और उच्छृंखल मन को रोक पाना तो और भी कठिन है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0687 - शून्य में अपने मन को केंद्रित करना, यह बहुत मुश्किल है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0688 - माया पर धावा बोलना (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0689 - अगर तुम दिव्य संग करते हो, तो तुम्हारी चेतना दिव्य है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0690 - भगवान शुद्ध हैं, और उनका धाम भी शुद्ध है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0691 - जो हमारे समाज में दिक्षा लेना चाहता है, हम चार सिद्धांत रखते हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0692 - भक्ति योग, योग सिद्धांतों का सर्वोच्च मंच है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0693 - जब हम सेवा की बात करते हैं, कोई मकसद नहीं है । सेवा प्रेम है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0694 - सेवा भाव में फिर से जाना होगा । यह एकदम सही इलाज है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0695 - सस्ते में वे भगवान का चयन करते हैं । भगवान इतने सस्ते हो गए हैं 'मैं भगवान हूँ, तुम भगवान हो' (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0696 - भक्ति योग शुद्ध (मिलावट के बिना) भक्ति है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0697 - आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें, बस । यही मांग की जानी चाहिए (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0698 - इन्द्रियों की सेवा करने की बजाय, कृपया तुम राधा कृष्ण की सेवा करो, तो तुम खुश रहोगे (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0699 - प्रेमी भक्त, श्री कृष्ण से प्रेम करना चाहता है, अपने मूल रूप में (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0700 - सेवा मतलब तीन चीज़ें स्वामी, सेवक और सेवा (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0702 - मैं आत्मा हूँ, शाश्वत हूँ। अब मैं पदार्थों से दूषित हूँ, इसलिए मैं भुगत रहा हूँ (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0703 - अगर तुम श्री कृष्ण में अपने मन को स्थित करते हो तो यह समाधि है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0704 - हरे कृष्ण मंत्र जपो और सुनने के लिए इस उपकरण (तुम्हारे कान) का उपयोग करो (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0705 - हम भगवद गीता में पाऍगे, भगवान का यह सबसे उत्कृष्ट विज्ञान (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0706 - असली शरीर भीतर है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0707 - जो उत्साहित नहीं हैं, आलसी, सुस्त, वे आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ नहीं सकते हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0708 - मछली के जीवन और मेरे जीवन के बीच का अंतर (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0709 - भगवान की परिभाषा (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0710 - हम लाखों अरबों विचार बना रहे हैं और उस विचार में उलझ रहे हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0711 - कृपया आपने जो शुरू किया है, उसे तोड़ें नहीं है बहुत आनंद के साथ उसे जारी रखें (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0712 - कृष्ण नें अादेश दिया " तुम पश्चिमी देशों में जाओ । उन्हें सिखाओ " (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0713 - व्यस्त मूर्ख खतरनाक है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0714 - कोई भी लाभ क्यों न हो, मैं बोलूँगा कृष्ण के लिए (2 revisions)