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  1. HI/Prabhupada 0766 - किसी भी स्थिति में, बस श्रीमद भागवत पढ़ कर, आप खुश रहेंगें‏‎ (2 revisions)
  2. HI/Prabhupada 0767 - ततः रूचि । फिर स्वाद । आपका इस शिविर के बाहर रहने का मन नहीं करेगा । स्वाद बदल जाएगा‏‎ (2 revisions)
  3. HI/Prabhupada 0768 - मुक्ति अर्थात् पुनः भौतिक शरीर प्राप्त करने की जरूरत न होना । इसी को मुक्ति कहा जाता है‏‎ (2 revisions)
  4. HI/Prabhupada 0769 - वैष्णव खुद बहुत खुश रहता है, क्योंकि उसका कृष्ण के साथ सीधा संबंध है‏‎ (2 revisions)
  5. HI/Prabhupada 0770 - मैं आत्मा से प्यार करता हूँ । आत्म तत्व वित । और क्यों मुझे आत्मा से प्यार है‏‎ (2 revisions)
  6. HI/Prabhupada 0771 - एक भक्त, भौतिक आनंद और दिव्य आनंद में एक साथ समान रूप से रुचि नहीं रख सकता है‏‎ (2 revisions)
  7. HI/Prabhupada 0772 - वैदिक सभ्यता की पूरी योजना है लोगों को मुक्ति देना‏‎ (2 revisions)
  8. HI/Prabhupada 0773 - हमारा ध्यान हमेशा होना चाहिए, कैसे हम अपने आध्यात्मिक जीवन को क्रियान्वित कर रहे हैं‏‎ (2 revisions)
  9. HI/Prabhupada 0774 - हम आध्यात्मिक उन्नति के हमारे अपने तरीके का निर्माण नहीं कर सकते‏‎ (2 revisions)
  10. HI/Prabhupada 0775 - कृष्ण भावनामृत में आगे बढ़ने में सबसे बड़ी बाधा है परिवारिक लगाव‏‎ (2 revisions)
  11. HI/Prabhupada 0776 - अगर मैं एक कुत्ता बना तो गलत क्या है', यह शिक्षा का परिणाम है‏‎ (2 revisions)
  12. HI/Prabhupada 0777 - जितना अधिक तुम अपनी चेतना को विकसित करते हो, उतना अधिक तुम स्वतंत्रता के प्रेमी बन जाते हो‏‎ (2 revisions)
  13. HI/Prabhupada 0778 - मानव समाज के लिए सबसे बड़ा योगदान ज्ञान है‏‎ (2 revisions)
  14. HI/Prabhupada 0779 - तुम उस जगह में सुखी नहीं हो सकते जो दुखों के लिए बनी है‏‎ (2 revisions)
  15. HI/Prabhupada 0780 - हम निरपेक्ष सत्य के ज्ञान की एक झलक पा सकते हैं‏‎ (2 revisions)
  16. HI/Prabhupada 0781 - योग की वास्तविक पूर्णता है कृष्ण के चरणकमलों में मन को स्थिर करना‏‎ (2 revisions)
  17. HI/Prabhupada 0782 - जप करना छोड़ना नहीं । फिर कृष्ण तुम्हारी रक्षा करेंगे‏‎ (2 revisions)
  18. HI/Prabhupada 0783 - इस भौतिक दुनिया में हम भोग करने की भावना से आए हैं। इसलिए हम पतीत हैं‏‎ (2 revisions)
  19. HI/Prabhupada 0784 - अगर हम भगवान के लिए काम नहीं करते हैं तो हम माया के चंगुल में रहेंगे‏‎ (2 revisions)
  20. HI/Prabhupada 0785 - तो तानाशाही अच्छा है, अगर तानाशाह अत्यधिक योग्य है आध्यात्म में ।‏‎ (2 revisions)
  21. HI/Prabhupada 0786 - यमराज द्वारा सजा का इंतजार कर रहा है‏‎ (2 revisions)
  22. HI/Prabhupada 0787 - लोग गलत समझते हैं, कि भगवद गीता साधारण युद्ध है, हिंसा‏‎ (2 revisions)
  23. HI/Prabhupada 0788 - हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए कि क्यों हम दुखी हैं क्योंकि हम इस भौतिक शरीर में हैं‏‎ (2 revisions)
  24. HI/Prabhupada 0789 - कर्मक्षेत्र, क्षेत्र का मालिक और क्षेत्र का पर्यवेक्षक‏‎ (2 revisions)
  25. HI/Prabhupada 0790 - कैसे दूसरों की पत्नी के साथ दोस्ती करनी चाहिए, और कैसे छल से दूसरों का पैसा लिया जाए‏‎ (2 revisions)
  26. HI/Prabhupada 0791 - हम प्रभु को संतुष्ट कर सकते हैं केवल प्रेम और भक्ति सेवा द्वारा‏‎ (2 revisions)
  27. HI/Prabhupada 0792 - कृष्ण का हर किसी के मित्र हुए बिना, कोई एक पल भी रह नहीं सकता है‏‎ (2 revisions)
  28. HI/Prabhupada 0793 - शिक्षा में कोई अंतर नहीं है । इसलिए गुरु एक है‏‎ (2 revisions)
  29. HI/Prabhupada 0794 - धूर्त गुरु कहेगा " हाँ तुम कुछ भी खा सकते हो । तुम कुछ भी कर सकते हो‏‎ (2 revisions)
  30. HI/Prabhupada 0795 - आधुनिक दुनिया वे बहुत सक्रिय हैं, लेकिन वे मूर्खता वश सक्रिय हैं, रजस तमस में‏‎ (2 revisions)
  31. HI/Prabhupada 0796 - मत सोचो कि मैं बोल रहा हूँ । मैं बस साधन हूँ । असली वक्ता भगवान हैं‏‎ (2 revisions)
  32. HI/Prabhupada 0797 जो कृष्णकी ओर से, लोगोंको उपदेश दे रहे हैं, कृष्ण भावनामृतको अपनाने के लिए, वे महान सैनिक है‏‎ (2 revisions)
  33. HI/Prabhupada 0798 - तुम नर्तकी हो। अब तुम्हे नृत्य करना होगा । तुम शर्मा नहीं सकती‏‎ (2 revisions)
  34. HI/Prabhupada 0799 - पूरी स्वतंत्रता शाश्वत, आनंदित और ज्ञान से पूर्ण‏‎ (2 revisions)
  35. HI/Prabhupada 0800 - कार्ल मार्क्स । वह सोच रहा है कि मजदूर, कर्मचारी, उनकी इन्द्रियॉ कैसे संतुष्ट हों‏‎ (2 revisions)
  36. HI/Prabhupada 0801 - प्रौद्योगिकी एक ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य का व्यापार नहीं है‏‎ (2 revisions)
  37. HI/Prabhupada 0802 - यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन इतना अच्छा है कि अधीर धीर हो सकता है‏‎ (2 revisions)
  38. HI/Prabhupada 0803 - मेरे भगवान, कृपया आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें, यही जीवन की पूर्णता है‏‎ (2 revisions)
  39. HI/Prabhupada 0804 - हमने अपने गुरु महाराज से सीखा है कि प्रचार, बहुत, बहुत ही महत्वपूर्ण बात है‏‎ (2 revisions)
  40. HI/Prabhupada 0805 - कृष्ण भावनाभावित में वे जानते हैं कि बंधन क्या है और मुक्ति क्या है‏‎ (2 revisions)
  41. HI/Prabhupada 0806 - कृष्ण और उनके प्रतिनिधियों का अनुसरण करना है, तो तुम महाजन बन जाते हो‏‎ (2 revisions)
  42. HI/Prabhupada 0807 - ब्रह्मास्त्र मंत्र से बना है। यह सूक्ष्म तरीका है‏‎ (2 revisions)
  43. HI/Prabhupada 0808 - हम कृष्ण को धोखा नहीं दे सकते हैं‏‎ (2 revisions)
  44. HI/Prabhupada 0809 - दानव-तंत्र' का शॉर्टकट 'लोकतंत्र' है‏‎ (2 revisions)
  45. HI/Prabhupada 0810 - इस भौतिक दुनिया की खतरनाक स्थिति से उत्तेजित मत होना‏‎ (2 revisions)
  46. HI/Prabhupada 0811 - रूप गोस्वामी का निर्देश है किसी न किसी तरह से, तुम कृष्ण के साथ जुड़ो‏‎ (2 revisions)
  47. HI/Prabhupada 0812 - हम पवित्र नाम का जाप करने के लिए अनिच्छुक हैं‏‎ (2 revisions)
  48. HI/Prabhupada 0813 -वास्तविक स्वतंत्रता है कैसे भौतिक कानूनों की पकड़ से बाहर निकलें‏‎ (2 revisions)
  49. HI/Prabhupada 0814 - भगवान को कोई कार्य नहीं है । वह आत्मनिर्भर है। न तो उनकी कोई भी आकांक्षा है‏‎ (2 revisions)
  50. HI/Prabhupada 0815 - तो भगवान साक्षी हैं । वे परिणाम दे रहे हैं‏‎ (2 revisions)

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