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  1. HI/Prabhupada 0561 - देवता का मतलब है लगभग भगवान । उनमें सब धर्मी गुण मिलेंगे‏‎ (2 revisions)
  2. HI/Prabhupada 0562 - मेरा प्रमाण वैदिक साहित्य हैं‏‎ (2 revisions)
  3. HI/Prabhupada 0563 - कुत्ते को एक बुरा नाम दो और उसे लटकाअो‏‎ (2 revisions)
  4. HI/Prabhupada 0564 - मैं कहता हूँ "भगवान के अादेश का पालन करें ।" यही मेरा मिशन है‏‎ (2 revisions)
  5. HI/Prabhupada 0565 - उन्हें मैं प्रशिक्षण दे रहा हूँ कि कैसे इंद्रियों को नियंत्रित करना है‏‎ (2 revisions)
  6. HI/Prabhupada 0566 - अगर अमेरिकी लोगों के नेता, वे आते हैं और वे समझने की कोशिश करते हैं‏‎ (2 revisions)
  7. HI/Prabhupada 0567 - मैं दुनिया को यह संस्कृति देना चाहता हूँ‏‎ (2 revisions)
  8. HI/Prabhupada 0568 - हम सिर्फ अापके दान पर निर्भर कर रहे हैं । आप चाहें, तो आप दान कर सकते हैं‏‎ (2 revisions)
  9. HI/Prabhupada 0569 - "स्वामीजी, मुझे दिक्षा दो ।" मैं तुरंत कहता हूँ "आपको इन चार सिद्धांतों का पालन करना होगा"‏‎ (2 revisions)
  10. HI/Prabhupada 0570 - पति और पत्नी के बीच गलतफहमी हो तो भी तलाक का सवाल ही नहीं था‏‎ (2 revisions)
  11. HI/Prabhupada 0571 - हमें परिवार के जीवन में नहीं रहना चाहिए । यही वैदिक संस्कृति है‏‎ (2 revisions)
  12. HI/Prabhupada 0572 - क्यों आप कहते हैं "ओह, मैं अपनी चर्च में अापको बात करने की अनुमति नहीं दे सकता ।"‏‎ (2 revisions)
  13. HI/Prabhupada 0573 - मैं किसी भी भगवद भावनाभावित व्यक्ति के साथ बात करने के लिए तैयार हूँ‏‎ (2 revisions)
  14. HI/Prabhupada 0574 - तुम मंजूरी के बिना किसी को नहीं मार सकते हो‏‎ (2 revisions)
  15. HI/Prabhupada 0575 - उन्हे अंधेरे में और अज्ञानता में रखा जाता है‏‎ (2 revisions)
  16. HI/Prabhupada 0576 - प्रक्रिया यह होनी चाहिए कि कैसे इन सभी प्रवृत्तियों को शून्य करें‏‎ (2 revisions)
  17. HI/Prabhupada 0577 - तथाकथित तत्वज्ञानी, वैज्ञानिक, सभी, इसलिए दुष्ट, मूर्ख । उन्हें अस्वीकार करो‏‎ (2 revisions)
  18. HI/Prabhupada 0578 - वही बोलो जो कृष्ण कहते हैं‏‎ (2 revisions)
  19. HI/Prabhupada 0579 - आत्मा उसके शरीर को बदल रही है जैसे हम अपने वस्र को बदलते हैं‏‎ (2 revisions)
  20. HI/Prabhupada 0580 - हम भगवान की मंजूरी के बिना हमारी इच्छाओं को पूरा नहीं कर सकते हैं‏‎ (2 revisions)
  21. HI/Prabhupada 0581 - अगर तुम कृष्ण की सेवा में अपने आप को संलग्न करते हो, तुम्हे नया प्रोत्साहन मिलेगा‏‎ (2 revisions)
  22. HI/Prabhupada 0582 - कृष्ण ह्दय में बैठे हैं‏‎ (2 revisions)
  23. HI/Prabhupada 0583 - सब कुछ भगवद गीता में है‏‎ (2 revisions)
  24. HI/Prabhupada 0584 - हम च्युत हो जाते हैं, नीचे गिर जाते हैं । लेकिन कृष्ण अच्युत हैं‏‎ (2 revisions)
  25. HI/Prabhupada 0585 - एक वैष्णव दूसरों को दुखी देखकर दुखी होता है‏‎ (2 revisions)
  26. HI/Prabhupada 0586 - वास्तव में शरीर की यह स्वीकृति का मतलब नहीं है कि मैं मरता हूँ‏‎ (2 revisions)
  27. HI/Prabhupada 0587 - संभव नहीं है । तो हम में से हर एक आध्यात्मिक भूख में है‏‎ (2 revisions)
  28. HI/Prabhupada 0588 - जो हम चाहते हैं कृष्ण तुम्हें दे देंगे‏‎ (2 revisions)
  29. HI/Prabhupada 0589 - हम इन भौतिक किस्मों से निराश हो रहे हैं‏‎ (2 revisions)
  30. HI/Prabhupada 0590 - इस शुद्धि का मतलब है कि हमें पता होना चाहिए कि, 'मैं यह शरीर नहीं हूँ । मैं आत्मा हूं'‏‎ (2 revisions)
  31. HI/Prabhupada 0591 - मेरा काम इस भौतिक चंगुल से बाहर निकलना है‏‎ (2 revisions)
  32. HI/Prabhupada 0592 - आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए‏‎ (2 revisions)
  33. HI/Prabhupada 0593 - जैसे ही तुम कृष्णभावनामृत में आते हो, तुम प्रसन्न हो जाते हो‏‎ (2 revisions)
  34. HI/Prabhupada 0594 - आत्मा को हमारे भौतिक उपकरणों से मापना असंभव है‏‎ (2 revisions)
  35. HI/Prabhupada 0595 - अगर आप विविधता चाहते हैं तो आपको एक ग्रह का आश्रय लेना होगा‏‎ (2 revisions)
  36. HI/Prabhupada 0596 -आत्मा को टुकड़ों में काटा नहीं जा सकता है‏‎ (2 revisions)
  37. HI/Prabhupada 0597 - हम इतनी मेहनत से काम कर रहे हैं जीवन में कुछ अानन्द प्राप्त करने के लिए‏‎ (2 revisions)
  38. HI/Prabhupada 0598 - हम नहीं समझ सकते हैं कि वे कितने महान हैं ! यह हमारी मूर्खता है‏‎ (2 revisions)
  39. HI/Prabhupada 0599 - कृष्ण भावनामृत इतना आसान नहीं है । जब तक आप अपने आप को आत्मसमर्पित न करे‏‎ (2 revisions)
  40. HI/Prabhupada 0600 - हम आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार नहीं हैं । यह हमारा भौतिक रोग है‏‎ (2 revisions)
  41. HI/Prabhupada 0601 - चैत्य गुरु का मतलब है जो भीतर से विवेक और ज्ञान देता है‏‎ (2 revisions)
  42. HI/Prabhupada 0602 -पिता परिवार के नेता हैं‏‎ (2 revisions)
  43. HI/Prabhupada 0603 - यह मृदंग घर घर में जाएगा‏‎ (2 revisions)
  44. HI/Prabhupada 0604 - अगर मैंने जारी रखा, कृष्ण दिव्य मंच पर मुझे रखने की कृपा करेंगे‏‎ (2 revisions)
  45. HI/Prabhupada 0605 - वासुदेव के लिए अपने प्रेम को बढ़ाते हो फिर भौतिक शरीर से संपर्क करने का कोई और मौका नहीं‏‎ (2 revisions)
  46. HI/Prabhupada 0606 - हम भगवद गीता यथारूप का प्रचार कर रहे हैं । यह अंतर है‏‎ (2 revisions)
  47. HI/Prabhupada 0607 - हमारे समाज में, तुम सभी गुरुभाई, गुरुबहिन हो‏‎ (2 revisions)
  48. HI/Prabhupada 0608 - भक्ति सेवा, हमें उत्साह के साथ, धैर्य के साथ निष्पादित करना चाहिए‏‎ (2 revisions)
  49. HI/Prabhupada 0609 - तुम कई हो जो हरे कृष्ण का जाप कर रहे हो । यही मेरी सफलता है‏‎ (2 revisions)
  50. HI/Prabhupada 0610 - जब तक कोई वर्ण और आश्रम की संस्था को अपनाता नहीं है, वह मनुष्य नहीं है‏‎ (2 revisions)

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