Pages with the most revisions
Showing below up to 50 results in range #8,151 to #8,200.
- HI/Prabhupada 0561 - देवता का मतलब है लगभग भगवान । उनमें सब धर्मी गुण मिलेंगे (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0562 - मेरा प्रमाण वैदिक साहित्य हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0563 - कुत्ते को एक बुरा नाम दो और उसे लटकाअो (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0564 - मैं कहता हूँ "भगवान के अादेश का पालन करें ।" यही मेरा मिशन है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0565 - उन्हें मैं प्रशिक्षण दे रहा हूँ कि कैसे इंद्रियों को नियंत्रित करना है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0566 - अगर अमेरिकी लोगों के नेता, वे आते हैं और वे समझने की कोशिश करते हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0567 - मैं दुनिया को यह संस्कृति देना चाहता हूँ (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0568 - हम सिर्फ अापके दान पर निर्भर कर रहे हैं । आप चाहें, तो आप दान कर सकते हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0569 - "स्वामीजी, मुझे दिक्षा दो ।" मैं तुरंत कहता हूँ "आपको इन चार सिद्धांतों का पालन करना होगा" (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0570 - पति और पत्नी के बीच गलतफहमी हो तो भी तलाक का सवाल ही नहीं था (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0571 - हमें परिवार के जीवन में नहीं रहना चाहिए । यही वैदिक संस्कृति है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0572 - क्यों आप कहते हैं "ओह, मैं अपनी चर्च में अापको बात करने की अनुमति नहीं दे सकता ।" (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0573 - मैं किसी भी भगवद भावनाभावित व्यक्ति के साथ बात करने के लिए तैयार हूँ (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0574 - तुम मंजूरी के बिना किसी को नहीं मार सकते हो (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0575 - उन्हे अंधेरे में और अज्ञानता में रखा जाता है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0576 - प्रक्रिया यह होनी चाहिए कि कैसे इन सभी प्रवृत्तियों को शून्य करें (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0577 - तथाकथित तत्वज्ञानी, वैज्ञानिक, सभी, इसलिए दुष्ट, मूर्ख । उन्हें अस्वीकार करो (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0578 - वही बोलो जो कृष्ण कहते हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0579 - आत्मा उसके शरीर को बदल रही है जैसे हम अपने वस्र को बदलते हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0580 - हम भगवान की मंजूरी के बिना हमारी इच्छाओं को पूरा नहीं कर सकते हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0581 - अगर तुम कृष्ण की सेवा में अपने आप को संलग्न करते हो, तुम्हे नया प्रोत्साहन मिलेगा (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0582 - कृष्ण ह्दय में बैठे हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0583 - सब कुछ भगवद गीता में है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0584 - हम च्युत हो जाते हैं, नीचे गिर जाते हैं । लेकिन कृष्ण अच्युत हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0585 - एक वैष्णव दूसरों को दुखी देखकर दुखी होता है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0586 - वास्तव में शरीर की यह स्वीकृति का मतलब नहीं है कि मैं मरता हूँ (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0587 - संभव नहीं है । तो हम में से हर एक आध्यात्मिक भूख में है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0588 - जो हम चाहते हैं कृष्ण तुम्हें दे देंगे (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0589 - हम इन भौतिक किस्मों से निराश हो रहे हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0590 - इस शुद्धि का मतलब है कि हमें पता होना चाहिए कि, 'मैं यह शरीर नहीं हूँ । मैं आत्मा हूं' (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0591 - मेरा काम इस भौतिक चंगुल से बाहर निकलना है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0592 - आपको बस कृष्ण के बारे में सोचने पर आना चाहिए (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0593 - जैसे ही तुम कृष्णभावनामृत में आते हो, तुम प्रसन्न हो जाते हो (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0594 - आत्मा को हमारे भौतिक उपकरणों से मापना असंभव है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0595 - अगर आप विविधता चाहते हैं तो आपको एक ग्रह का आश्रय लेना होगा (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0596 -आत्मा को टुकड़ों में काटा नहीं जा सकता है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0597 - हम इतनी मेहनत से काम कर रहे हैं जीवन में कुछ अानन्द प्राप्त करने के लिए (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0598 - हम नहीं समझ सकते हैं कि वे कितने महान हैं ! यह हमारी मूर्खता है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0599 - कृष्ण भावनामृत इतना आसान नहीं है । जब तक आप अपने आप को आत्मसमर्पित न करे (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0600 - हम आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार नहीं हैं । यह हमारा भौतिक रोग है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0601 - चैत्य गुरु का मतलब है जो भीतर से विवेक और ज्ञान देता है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0602 -पिता परिवार के नेता हैं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0603 - यह मृदंग घर घर में जाएगा (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0604 - अगर मैंने जारी रखा, कृष्ण दिव्य मंच पर मुझे रखने की कृपा करेंगे (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0605 - वासुदेव के लिए अपने प्रेम को बढ़ाते हो फिर भौतिक शरीर से संपर्क करने का कोई और मौका नहीं (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0606 - हम भगवद गीता यथारूप का प्रचार कर रहे हैं । यह अंतर है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0607 - हमारे समाज में, तुम सभी गुरुभाई, गुरुबहिन हो (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0608 - भक्ति सेवा, हमें उत्साह के साथ, धैर्य के साथ निष्पादित करना चाहिए (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0609 - तुम कई हो जो हरे कृष्ण का जाप कर रहे हो । यही मेरी सफलता है (2 revisions)
- HI/Prabhupada 0610 - जब तक कोई वर्ण और आश्रम की संस्था को अपनाता नहीं है, वह मनुष्य नहीं है (2 revisions)